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यस्त्वा॒ स्वश्वः॑ सुहिर॒ण्यो अ॑ग्न उप॒याति॒ वसु॑मता॒ रथे॑न। तस्य॑ त्रा॒ता भ॑वसि॒ तस्य॒ सखा॒ यस्त॑ आति॒थ्यमा॑नु॒षग्जुजो॑षत् ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

yas tvā svaśvaḥ suhiraṇyo agna upayāti vasumatā rathena | tasya trātā bhavasi tasya sakhā yas ta ātithyam ānuṣag jujoṣat ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। त्वा॒। सु॒ऽअश्वः॑। सु॒ऽहि॒र॒ण्यः। अ॒ग्ने॒। उ॒प॒ऽयाति॑। वसु॑ऽमता। रथे॑न। तस्य॑। त्रा॒ता। भ॒व॒सि॒। तस्य॑। सखा॑। यः। ते॒। आ॒ति॒थ्यम्। आ॒नु॒षक्। जुजो॑षत्॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:4» मन्त्र:10 | अष्टक:3» अध्याय:4» वर्ग:24» मन्त्र:5 | मण्डल:4» अनुवाक:1» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) राजन् (यः) जो (ते) आपकी (आनुषक्) अनुकूलता से वर्त्तमान (आतिथ्यम्) अतिथि के सदृश सत्कार की (जुजोषत्) निरन्तर सेवा करे (यः) जो (सुहिरण्यः) उत्तम सुवर्ण आदि धनयुक्त और (स्वश्वः) सुन्दर घोड़ों से युक्त पुरुष (वसुमता) बहुत धन से युक्त (रथेन) रमणीय वाहन से (त्वा) आपके (उपयाति) समीप प्राप्त होता है (तस्य) उसके आप (त्राता) रक्षा करनेवाले (भवसि) हूजिये और (तस्य) उसके (सखा) मित्र हूजिये ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! जो आपके राज्य के उपकार करने और सत्कार करनेवाले हों, उनके ही मित्र और रक्षा करनेवाले हुए चकवर्त्ती हूजिये ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यस्त आनुषगातिथ्यं जुजोषद्यः सुहिरण्यः स्वश्वो वसुमता रथेन त्वोपयाति तस्य त्वं त्राता भवसि तस्य सखा भवसि ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) (त्वा) त्वाम् (स्वश्वः) शोभनाश्वः (सुहिरण्यः) उत्तमसुवर्णादिधनः (अग्ने) राजन् (उपयाति) (वसुमता) बहुधनयुक्तेन (रथेन) रमणीयेन यानेन (तस्य) (त्राता) (भवसि) भवेः (तस्य) (सखा) सुहृत् (यः) (ते) तव (आतिथ्यम्) अतिथिवत्सत्कारम् (आनुषक्) आनुकूल्येन (जुजोषत्) भृशं सेवेत ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! ये तव राष्ट्रस्य चोपकारकाः स्युः सत्कर्त्तारश्च तेषामेव सखा रक्षकः सञ्चक्रवर्त्ती भवेः ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा ! जे तुझ्या राज्यावर उपकार करणारे, सत्कार करणारे असतील त्यांचेच मित्र व रक्षक बनून चक्रवर्ती हो. ॥ १० ॥